डॉ ललित राजपुरोहित को राष्ट्रीय नाटक अकादमी, नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर की नाटक लेखन प्रतियोगिता में प्रोत्साहन पुरस्कार प्राप्त है। उनके लेख, कविताएं और कहानियां देश के प्रतिष्ठित साहित्य पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्तमान में वह विभिन्न हिंदी सेवा समितियों के सहयोग से हिंदी भाषा के प्रचार एवं प्रसार के लिए काम कर रहे हैं । एक कहानी संग्रह ‘आत्माएं बोल सकती है ‘ और ‘मुट्ठी से दरकती कविताएं ‘, कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका है । पत्रकारिता एवं संपादन के क्षेत्र में ‘खेतेश्वर संदेश ‘नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी उनके नाम है ।
‘राजसिंहासन के उत्तराधिकारी ‘ के बारे में विस्तार से बताएं ?
यह कहानी कुछ ऐसी ही कहानी है जैसी हम अपने अपनी दादी/नानी से सुनते हैं। मगर आज परिवेश बदल गया है। दादी नानी की कहानियों की जगह विडियो गेम, मोबाइल गेम और ऑनलाइन किताबों ने ले ली है। यह कहानी प्रेरक कहानी है जो अपने परिवार के प्रति प्रेम और नेतृत्व गुणों को विकसित करने की सीख देती है। तीन राजकुमारों की कहानी है। विद्या और बल में सभी राजकुमार एक जैसे हैं। मगर राजा बनने के लिए जो गुण चाहिए उन्हीं गुणों की खोज करती यह कहानी है। तेलानी राम और अकबर-बीरबल जैसी लोक कहानियों ने जो प्रसिद्धी पाई वो आज की कहानियॉं नही पा रही हैं । भारत की भूमि पर हज़ारों लोक कहानियॉं है जिन्हें आज फ़िर से नए सिरे से लिखा जाना चाहिए। ऐसी कहानियों जिनका बच्चे तो बच्चे, बुज़ुर्ग भी मज़ा लें सकें।
इस कहानी को लिखने के पीछे क्या प्रेरणा थी ?
एक वेबसाइट पोर्टल है जो बच्चों के लिए कहानियॉं प्रकाशित करता है, उनके अनुरोध पर ये कहानी मैंने लिखी। हालॉंकि कहानी का प्लॉट कई सालों से मेरे दिमाग़ में था, मगर यथार्थ में परिणित तब हुआ जब पोर्टल की ओर से अनुरोध प्राप्त हुआ। यह कहानी मैं अपने बच्चों को सुनाया करता था उनकी भी ज़िद थी कि आप इस कहानी को लिखकर पोर्टल या अपनी किताब में प्रकाशित ज़रुर करें।
लेखक बनने के पीछे क्या प्रेरणा रही ?
पांचवी कक्षा से लिख रहा हूँ तब गुरूजन और साथियों से लेखन के लिए प्रोत्साहन मिलता था और आज ऑनलाइन पाठकों के कमेंट से प्रोत्साहन मिल रहा है। कॉलेज के दिनों में मुझे पता चला कि भारत की अरुंधती राय को बुकर पुरस्कार प्राप्त हुआ है, बस उसी रोज़ बुकर पुरस्कार का सपना मेरी प्रेरणा बन गया।
ऐतिहासिक कहानियों से मिलने वाली सीख आज के दौर में कितनी ज़रूरी है ?
बहुत ज़रूरी है। आज भी पंचतंत्र और विक्रम बेताल की कहानियॉं समसामयिक है। इन कहानियों में साधारण वाक्य विन्यास और मुहावरों का प्रयोग होता है जिससे पाठक की भाषा पर पकड़ और मज़बूत होती जाती है। विशेषकर बच्चों और युवाओं के लिए ऐतिहासिक कहानियों का पठन पाठन बहुत ज़रूरी है, इससे न केवल सीख मिलती बल्कि ऐतिहासिक काल के भारतीय परीवेश को निकटता से जानने का मौक़ा भी मिलता है।
आपके लिए कहानी लिखने के लिए सबसे अहम चीज़ क्या होती है ?
मेरे लिए कहानी लिखने के लिए चार चीज़ें अहम हैं, पहला विषय वस्तु या कंटेट, दूसरा पात्रों का चयन, तीसरा कहानी का अंत और चौथी कहानी की भाषा। आज हिंगलिश और फेसबुकिया भाषा का प्रचलन हो गया। ठेठ साहित्यिक भाषा साधारण पाठकों के पल्ले ही नहीं पड़ती। ज़्यादातर मैं कहानी का अंत पाठकों पर छोड़ देता था, मगर पाठकों को अधूरी कहानी प्राय पसंद नही आती इसलिए कहानी का अंत या क्लाइमेक्स कहानी का अहम भाग हो जाता है। कहानी लिखने के लिए पर्याप्त समय देना पड़ता है और आज की भाग दौड़ वाली ज़िंदगी में लेखक और पाठक दोनों इंस्टेंट कहानियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
हिंदी में आपकी पसंदीदा लेखक/लेखिकाए कौन हैं और क्यों ?
मुझे हिंदी लेखकों में प्रेमचंद, मंटो, पाश, कृष्णा सोबती और नामवर सिंह को पढ़ना पसंद है। दूसरी ओर विदेशी लेखकों में रूसी लेखक गोर्की की कहानियॉं और ईरान के कवि सबिर हका की कविताऍं पसंद है। इन लेखकों ने अपनी विशेष कथ्य और लेखन शैली को इजाद किया है। इनकी कहानियों / कविताओं के ऐसे विषय होते है जैसे पाठक के आस पास ही घटित हुआ हो।
हिंदी में आपकी पसंदीदा कहानी कौन सी है ?
निलेश मिश्रा, अकबर कादरी, कृष्णा सोबती, गोर्की, सत्यजीत रे आदि लेखकों की कहानियॉं विशेष प्रिय है, जिन्हें में कई बार पढ़ता हूँ। किसी एक कहानी का नाम लेना अन्य कहानियों के साथ अन्याय होगा।
नए हिंदी लेखकों के लिए आप कुछ सुझाव देना चाहेंगे ?
लिखते रहिए और पढ़ते रहिए। यही लिखने पढ़ने की आदत एक न एक दिन आपको कहानियों / कविताओं का सिद्धहस्त बना देंगी। सपने देखते रहिए, यही सपने एक दिन आपकी रातों की नींद को हवा कर देंगे और उस समय आप लिख रहे होंगे कोई एक नई कहानी।
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